
शायद भुल गया है इंसान ,आखिर जिंदगी हैं क्यों...
सही समझ कर खुद को
औरों की गलतियां ढूंढने में लगा पड़ा है
तू बेशक सही समझ खुद को ,दुनिया गलत क्यों
शायद भुल गया है इंसान , आखिर जिंदगी है क्यों
मैं कितना धार्मिक हु,मैं सब ज्यादा इबादत करता हु
आखिर भगवान के लिए दिखावा क्यों
हैं तो दिल में रख दुनिया को जताना क्यों
शायद भुल गया है इंसान ,आखिर जिंदगी हैं क्यों...
है कोई अपना तुम्हारा ,साथ उसके रहो
है कोई पराया तुम्हारे लिए ,बात उसकी ना करो
ये इंसान मेरे लिए कितने करीब ,ये कितने दूर
हर बार ऊंचा नीचा दिखाना क्यों
शायद भुल गया है इंसान ,आखिर जिंदगी है क्यों...
फ़र्क करने लगा है वो इंसानों में
कुछ घंटे बैठना हो तो ,बिरादरी ढूंढने लगा है महफिलों में
अमीर है सब गुनाह पे परदा
गरीब है तो ताने और बेइज्जती क्यों
शायद भुल गया है इंसान , आखिर जिंदगी है क्यों
गुरुर करना है तो मेहनत का कर
शोहरत का क्यों
दिखाना है तो इंसानियत दिखा
तेरी उंचाई क्यों
प्यार बटाना है तो किसके आंसू पोंछ
किसीको जलाना क्यों
शायद भुल गया है इंसान ,आखिर जिंदगी क्यो
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