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देखने में ये दुनिया लगती बड़ी रंगीन है,
पर असल में ये दुनिया बेहद ही रंगहीन है,
बढ़ते हुए के लिए कोई चमत्कार,
तो मेहनत करते हुए के लिए बंजर ज़मीन है,
तब ही तो कहते है शायद,
कि यूं ही नहीं ख़ुद के बलबूते बना जाता शौकिन है,
कहते है क्या लेकर आये है,
और क्या लेकर जाना है??
बंद मुट्ठी लेकर आये है,
और हाथ फैलाए चले जाना है,
मोह-माया का ये खेल है सारा,
जीता नहीं कोई आज तलक भी,
पर फिर भी हर एक को जीत के लिए जाना है,
कोई करे राधे-राधे तो क़ुरान पढ़ता है,
पर इस पर न है ध्यान किसी का,
कि अंत में तो कतरा-कतरा मिट्टी ह
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