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ना गये कश्मीर कभी,
ना गये कन्याकुमारी।
ना घूमें चारों धाम;
ना देश-विदेश की सैर की;
फ़िर भी सच मानों,
मैंने दुनिया देख ली।
शकलें कईं ना देखी तो क्या!
इंसानों की बदलती सूरत देख ली
सृष्टी का सौंदर्य ना देखा तो क्या,
लोगों की बदलती नीयत देख ली।
पूरब हो या पश्चिम हो,
उत्तर हो या दक्षिण हो,
चारों दिशाओं में है एक सी स्थिति।
अमीर हो या गरीब हो,
अपना हो या पराया हो,
है तो आखिर इंन्सान ही;
सभी भूके-प्यासे हैं।
कही अन्न-जल की प्यास,
तो कही पैसों की मोह-माया देख ली।
मैंने बड़े दिलवालों की
छोटी-छोटी कमज़ोरी देख ली।
सच कहती हूँ, मैंने दुनिया देख ली।
सम्रिता®
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