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कान के साथ,
यदि दीवारों की ज़ुबाँ भी होती,
तो इतिहास की कहानियाँ,
कुछ और ही दृश्य दिखाती।
सत्ता की लालसा और राजनीति,
उन में भी होती पर,
षड़यंत्र की दास्तानें शायद,
कुछ और हकीकत बयाँ करती।
इन कहानियों में, हेराफेरी ना हो पाती।
पर दीवारें भी हैं चालाख बड़ी।
फ़ितरत इंसानों की हैं समझ गई।
ये बात वो हैं जान गईं कि,
होती उनकी ज़ुबाँ यदि,
तो इंसानों का पहला शिकार दीवारें ही होती।
सम्रिता®
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