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हाथों की अंजुलि में कितनी बूंदें समेटोगे?
जो अतिरिक्त हैं, बाँट दो उन्हें।
उन्हें क्या संग ले जाओगे?
या बटोर कर,
बंद तिज़ोरी में सजाओगे?
फ़िर ये काम किसी के ना आएंगी।
जब जानेगी दुनिया ये खुदगर्ज़ी,
क्या सबसे नज़र मिला पाओगे?
बंद रही तो, बदबू ये फैलाएंगी।
जो संग बदनामी ले आएगी।
इसे फ़ैलने से क्या रोक सकोगे?
उमड़कर अगर वो छलकेंगी,
मिट्टी में मिल जाएंगी।
मिट्टी में मिलने से बेहतर,
नदी में बह जाने दो उन्हें।
कई तटों से गुज़रते हुए
सबकी प्यास बुझाने दो उन्हें।
जो अतिरिक्त हैं, बाँट दो उन्हें।
~सम्रिता®
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