आख़िरी प्रहार's image
Share0 Bookmarks 43625 Reads0 Likes

हे नियति ! हेे मेरे भाग्यविधाता !

होना हो जितना, उतना निष्ठुर और हो जा

अपितु बात इक मेरी भी सुन ले

है एक प्रतिज्ञा , प्रतिज्ञा वह भी सुन ले


तेरे दिए घाव पर मैं हार कभी न मानूँगा

छोड़े सांस साथ मगर मैं मरहम कभी न बाँधूँगातेरे मेरे इस द्वंद में

शंखनाद एक मैं भी बजाता हूँ

बनाकर गगन और धरती को साक्षी

मैं तुझे आज फिर चेताता हूँ,

ख़त्म सब द्वंदों को करने वालाजय का ऐसा वार होगा

तेरे लाख वारों के बीच

मेरा आख़िरी प्रहार होगा ।

मैं सूर्यवंशी रघुनाथ नहीं वह

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts