
हे पढ़ा लिखा बुद्धजीवी मानव बड़ा ना बन तू मां और बाप के दामन को छोड़ कर
आज तक कोई बड़ा ना बन पाया मां बाप के दिल को तोड़ कर
ए मूर्ख पल्लू के चक्कर में तू आँचल को खोता है खुशियां कितनी ही माना ले पर आज भी मां बाप को छोड़ कर दरिद्रता में ही जीता है
बोझ कैसे समझा तूने जीवन भर ख़ुद तेरा बोझ उठाने वाले को
जिसकी नही है तुझे जरा भी जीकर जा कर पता कर आज भी उन बूढ़ी आंखो में तेरे लिए है कितनी फिकर
हे पढ़ा लिखा बुद्धजीवी मानव बड़ा ना बन तू मां बाप के दामन को छोड़ के
आज तक कोई बड़ा ना बन पाया इनके दिल को तोड़ के
पल भर में कैसे ठुकरा देता है जीवन भर की सच्चाई को एक पल में कैसे झुठला देता है वर्षो की अच्छाई को
जिनके कान्हे बैठ है तू खेला उस भगवान को तूने कैसे कर दिया अकेला?
तुझे पढ़ाया तुझे लिखाया ताकि तू खुद में कुछ काबिल बन ना की मां बाप के खुशियों का कातिल बन
बाप के मेहनत और मां के सिगड़ी पर जले हुए हाथों के दर्द को तू भूल गया क्या इसी दिन के लिए तू स्कूल गया ?
पल भर का प्यार सदियों का दुलार ले गया पुरखो की बनाईं इज्जत और बाप का दिया संस्कार ले गया
हे बुद्धजीवी मानव बड़ा ना बन तू मां बाप के दामन को छोड़ के
आज तक कोई बड़ा ना बन सका उनके दिल को तोड़ के
आज जिस शान और शौकत पर तेरा वर्तमान है कल तेरे मां बाप की तरह ही तेरा अतीत होगा
आज मोह में तू भला बुरा सब भूल चुका है पर कल मां बाप से भी बद्तर तेरा व्यतीत होगा।
........... समीर संघर्ष
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