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हे पढ़ा लिखा बुद्धजीवी मानव बड़ा ना बन तू मां और बाप के दामन को छोड़ कर
आज तक कोई बड़ा ना बन पाया मां बाप के दिल को तोड़ कर
ए मूर्ख पल्लू के चक्कर में तू आँचल को खोता है खुशियां कितनी ही माना ले पर आज भी मां बाप को छोड़ कर दरिद्रता में ही जीता है
बोझ कैसे समझा तूने जीवन भर ख़ुद तेरा बोझ उठाने वाले को
जिसकी नही है तुझे जरा भी जीकर जा कर पता कर आज भी उन बूढ़ी आंखो में तेरे लिए है कितनी फिकर
हे पढ़ा लिखा बुद्धजीवी मानव बड़ा ना बन तू मां बाप के दामन को छोड़ के
आज तक कोई बड़ा ना बन पाया इनके दिल को तोड़ के
पल भर में कैसे ठुकरा देता है जीवन भर की सच्चाई को एक पल में कैसे झुठला देता है वर्षो की अच्छाई को
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