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घनघोर घटा की छाया में

था खोया जब साया मेरा

ज्योतिपुंज की आभा बनकर

तुमने ही तो दिखलाया पथ ।

 

कैसे कहूँ, मैं आभारी हूँ

जब जीवन का श्रेय तुम्हीं को

कैसे कहूँ ऋण चुकता दूँगा

जब मन, प्राण समर्पित तुझको ।


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