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तुम खामोशी नहीं --
शब्द प्रवाह का समंदर,
कविता की अस्मिता
छंदों की जननी हो |
अस्तित्व का आभास --
लिपटकर जिससे बहते आँसू
कभी दर्द से, कभी हास के
भावों की वह रानी हो |
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तुम खामोशी नहीं --
शब्द प्रवाह का समंदर,
कविता की अस्मिता
छंदों की जननी हो |
अस्तित्व का आभास --
लिपटकर जिससे बहते आँसू
कभी दर्द से, कभी हास के
भावों की वह रानी हो |
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