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खत का पुलिंदा

samarpan.swamisamarpan.swami February 27, 2023
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आज बस यूँ खयाल आया

खोलूँ उस बंद पुलिंदे को

समेट रखा जिसने अपनी साँसों से

पढ़े अनपढ़े वे खत

जो तुम भेजते रहे मुझे

सांझ उषा दिवा निशा

पहर पक्ष माह वत्सर |


यूँ चले जाते थे अपनी राह

खत की बूँद टपका

ज्यों गहन सागर

रहे भँवर के साथ

अनछुआ, निर्विकार |


एक अजीब-सी महक आई

खत-पुलिंद से

हजारों मिले थे खुशबू जिनमें

उपलब्धियों की

आँसू, हँसी, उदासी की | 


यादों की गलियों में टहलते

मिला उनसे जो लाये थे कभी

मेरे अनचाहे गम, मुस्कान 

किये थे मुझे रह रह

नाराज हताश दुखी हैरान |

खत पुराने थे, शब्द भी

झाँका उन्हें कर अनावृत्त –


देखा शब्द रहे बदलते

कभी फिर-फिर दुहराते

समय के साथ, कभी आगे

पर तुम तो वही रहे

जो तुम थे कल, आज

और, कल भी रहोगे

बस एहसास एक |


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