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किताबें पढ़ते पढ़ते अक़्सर कुछ न कुछ ऐसा मिल ही जाता हैं, जिसे पढ़कर लगता हैं कि लिखने वाले ने मानो हमारे ही जज़्बात लिख दिए हो। कितना सुखद होता हैं न वो पढ़ना,जो हम महसूस करतें हैं,और उस से भी सुखद होता हैं वो लिखना जो हम कहना चाहते हैं पर कह नही पाते।सो पढ़ते रहिये,लिखते रहिये।
-Salma Malik
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