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हाँ बहुत देर तक तो नहीं,
मगर तुम्हारी यादें आती हैं आज भी
मेरे बालिन(सिराहने) पर,मेरे करवट बदलते ही,
मुझें सताने,
और मैं कोशिश करती हूँ उन्हें ऐसे ही नजरअंदाज करने की,
जैसे यात्रा करते हुए हम बहुत सारी चीज़ो को नजरअंदाज कर देते है,
कई बार लगता है मानो जैसे तुम और मैं एक दूसरे से दूर भाग रहे हो,जैसे भागते है पेड़,
जब हम सफ़र में होते है,
मगर फिर सोचती हूँ कि पेड़ तो असल में अपनी ही जग़ह खड़े है,दूर तो हम भागते है उनस
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