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जब ज़िंदगी नया मोड़ ले रही हों तो कुछ समझ नही आता कि हम कैसे उस situation को face करे या कैसे react करे।औऱ सब अपनी उलझनों में उलझें हो।कोई भी दिलासा नही दे रहा हो कि डरने की ज़रूरत नही हैं, आने वाली ज़िंदगी बहुत बेहतर होगी तुम्हारी।
दोस्त होते हैं न मुश्किल दिनों में साथ देने को,समझाने को,मग़र कोई भी ऐसा न कर रहा हो या न कर पा रहा हो,तो मुश्किल सी लगती हैं ज़िंदगी, मानो एक उलझी सी पहेली हो। और फिर हम बस एक कोशिश करते हैं, ख़ुद के जज़्बात को छिपाने की।
और अपने जज़्बात को छिपाते छिपाते एक दिन हम ख़ुद को हर रिश्ते से छिपाने की कोशिश करने लगते हैं।
रातों की नींद भी रात की रोशनी की तरह कही ग़ायब सी हो जाती हैं लाख चाहते हुए भी अपनी बेचैनी को अल्फ़ाज़ की चादर में नही लपेट पाते हैं।
अंधेरे की तरह एक बैचैनी हमारे ज़िस्म से लिपट जाती हैं और हम उसे ख़ुद से अलग ही नही कर पाते हैं, हम्म शायद ये भी ज़िंदगी का एक हिस्सा हैं औऱ हमें अपने इस हिस्से को भी जीना पड़ता हैं, ये बैचैनी वाला हिस्सा भी ज़िंदगी हैं
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