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कहानी का पहला रुख:-
बहुत वक़्त लगा होगा न उसे,
जब उसने अपने एहसास को लफ़्ज़ों के मोती पिरोने चाहे होंगे,
कुछ ढूंढा होगा इधर उधर किताबो में,
लफ़्ज़ों को बयां करने का तरीका,
कुछ पढ़े होंगे किस्से प्रेमियों के।
सीखी होगी कुछ शायरी अपनी मोहब्बत को ख़ुश करने के लिए।
लिखे होंगे कुछ प्रेम पत्र उसे देने को।
कई दिनों तक रखा होगा ख़ुद को किसी कशमकश में,
कहने ना कहने की जुस्तुजू में।
कई बार उठाया होगा फ़ोन उससे बात करने को।
बात की भी होगी मग़र जो कहना चाहा होगा,
वो ना कहा होगा।
उसके इनकार का भी बेहद डर रहा होगा।
फ़िर इतनी दूरी तय करने के बाद,
उसकी "हाँ" औऱ "ना" से बहुत परे जाकर,
हिम्मत जुटाकर कह दिया होगा अपने दिल की बात को ,एक सीधी सी बात की तरह कि
"मैं तुम्हे बेहद प्रेम करता हूँ"
कहानी का दूसरा रुख़:-
ख़ुशी तो बेहद हुई होगी उसे ये सुनकर,
किसी के दिल मे अपने लिए मोहब्बत सुनकर।
फिर उसने सोचा होगा कि
इसमें कही कुछ झूठ तो नही।
ग़र सब सच हैं तो सच ही सही।
उसने भी ढूँढे होंगे प्रेम के उत्तर देने के सारे तरीके।
रातो की नींदों को गवाया होगा,
सूरज तो निकला होगा मग़र उसे चैन ना आया होगा।
उसने भी उठायी होगी कलम कुछ लिखने को।
फ़िर लिखने को कोई लफ़्ज उसे समझ न आया होगा।
इन सबके बीच घर की इज़्ज़त का भी उसे ख़्याल आया होगा। वो ग़ुरूर हैं अपने पिता का,
उसके दिल ने उसे बताया होगा।
बेटियां होती हैं घर की इज़्ज़त,
ये सब सोचकर उसने भी आँसू बहाये होंगे।
कैसे झुकने दे वो सर अपने परिवार का,
इन बातों का भी फ़िर उसे ख़्याल आया होगा।
एक तरफ़ उसकी मोहब्बत,
एक तरफ़ पूरा परिवार होगा।
इन सबके बीच उसे एक को चुनना पड़ा होगा।
हम्म,ये सारी दूरी तय करने के बाद
उसने ख़ुद को पत्थर किया होगा,
कलम उठायी होगी और फ़िर लिख दिया होगा की,
"मैं तुम्हें प्रेम नही कर सकती, अलविदा।"
©- Salma Malik
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