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कहानी का पहला रुख:-
बहुत वक़्त लगा होगा न उसे,
जब उसने अपने एहसास को लफ़्ज़ों के मोती पिरोने चाहे होंगे,
कुछ ढूंढा होगा इधर उधर किताबो में,
लफ़्ज़ों को बयां करने का तरीका,
कुछ पढ़े होंगे किस्से प्रेमियों के।
सीखी होगी कुछ शायरी अपनी मोहब्बत को ख़ुश करने के लिए।
लिखे होंगे कुछ प्रेम पत्र उसे देने को।
कई दिनों तक रखा होगा ख़ुद को किसी कशमकश में,
कहने ना कहने की जुस्तुजू में।
कई बार उठाया होगा फ़ोन उससे बात करने को।
बात की भी होगी मग़र जो कहना चाहा होगा,
वो ना कहा होगा।
उसके इनकार का भी बेहद डर रहा होगा।
फ़िर इतनी दूरी तय करने के बाद,
उसकी "हाँ" औऱ "ना" से बहुत परे जाकर,
हिम्मत जुटाकर कह दिया होगा अपने दिल की बात को ,एक सीधी सी बात की तरह कि
"मैं तुम्हे बेहद प्रेम करता हूँ"
कहानी का दूसरा रुख़:-
ख़ुशी तो बेहद हुई होगी उसे ये सुनकर,
किसी के दिल मे अपने लिए मोहब्बत सुनकर।
फि
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