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अब अपने प्रेम पर कविताएँ नहीं लिखती वो,अपने प्रेम को याद करना भी छोड़ दिया है उसने,फिर भी जाने क्यों और कैसे बीता हुआ हर लम्हा रह रह के दिल के दरवाज़े पर दस्तक दे ही देता है।और इसी दरमियाँ न जाने कितनी यादें अंदर आ जाती है, और हर याद एक छोटी सी मीठी सी मुस्कान के साथ एक दर्द,एक कसक छोड़ जाती है। आज तक वो समझ ही नहीं पाई कि तुम्हारा प्रेम उसके लिए वाक़ई प्रेम था या कोई जूनून या फिर कोई वहशत। काश वो समझ पाती तो शायद ज़िन्दगी आसान हो जाती है। वो ज़िन्दगी के एक दोहराहे पर खड़ी थी,और ठीक वैसे जैसे Robert Frost ने अपनी कविता The Road Not Taken में लिखा है कि-
"And sorry I couldn't travel both
And be one traveller,long I stood
And looked down one as far as I could..."
 और Frost की ही तरह उसने भी एक रास्ता चुना,उसने प्रेम का त्याग कर,चुना अपना परिवार क्योंकि वो जानती थी कि-
प्रेम को चुनने पर लड़कियां अक्सर बदचलन,  और परिवार को चुनने पर बेवफ़ा कहलाई हैं।

उसने ख़ुद को बदचलन कहलवाने के बजाय बेवफ़ा कहलवाना चुना। और क्या करती वो,कैसे सिर्फ़ किसी के ये कहने भर से कि "वह उससे बहुत प्यार करता है", 

क्यों और कैसे ठुकराती वो अपना परिवार,
यूँ तो ज़िन्दगी किसी हमसफ़र के

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