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कभी सोचा नहीं?
किसलिए बर्बाद कर रहे हो ख़ुद को?किसके लिए आँसू बहा रहे हों?ये इतनी उदासी इतनी ख़ामोशी क्यों बना ली अपने अंदर? हार मानने लगे हो ज़िन्दगी से?ऐसे तो नहीं थे तुम।सारे सपने एक एक करके टूट रहे है,हाथों से हाथ छूट रहे है,तो क्या  हार मान लोगे ज़िन्दगी से।
इतने कमज़ोर तो न थे तुम।
सुनो,किसी और के लिए नहीं,बल्क़ि अपने लिए फिर से सपने बुनो,चलते रहो बिना रुके।अभी बहुत आगे बढ़ना है तुम्हें, अपने ख़ुद के लिए। मरने से पहले ख़ुद के लिए जीना सीखो,

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