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मदन मोहन दानिश का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत शेर हैं-
"पत्थर पहले ख़ुद को पत्थर करता हैं,
तब जाकर ही कुछ कारीगर करता हैं।"

यानी अगर पत्थर ही कमज़ोर हुआ,तो कोई भी कारीगर कुछ नही कर सकेगा।कोई भी कारीगर पत्थर से मूर्ति नही बल्क़ि  उस पत्थर में मौजूद मूर्ति को बाहर निकालता हैं।एक मूर्तिकार सिर्फ़ उस मूर्ति का बेकार हिस्सा खुरचकर,उसके अंदर से एक बेहतरीन मूर्ति निकाल देता हैं।
अग़र ग़ौर की जाये तो असल ज़िन्दगी और इस शेर में बस थोड़ा सा फ़र्क़ हैं, इस शेर में एक पत्थर और एक कारीगर हैं मग़र असल ज़िंदगी मे पत्थर भी आप ही हैं और कारीगर भी।यहाँ पर आपको तराशने के लिए कोई कारीगर नही आयेगा।अपना कारीगर आपको ख़ुद ही बनना पड़ेगा। किसी के पास इतनी फ़ुर्सत नही कि बैठकर आप पर अपना वक़्त जाया करे,और मुझे लगता हैं किसी को किसी पर अपना वक़्त ऐसे जाया भी नही करना चाहिए। आप अपने आप ख़ुद पर मेहनत कीजिए ।अगर आप ख़ुद पर ख़ुद के लिए ही मेहनत नही कर सकते तो इस दुनिया को इल्ज़ाम देने से इस दुनिया का कुछ नही बिगड़ेगा मग़र आप ज़रूर अपना बहुत वक़्त इसी इंतेज़ार में गवाँ देगे कि कोई आपको तराशेगा।

इसलिए बेहतर हैं कि आप ख़ुद ही ख़ुद को तराशे, ज़िंदगी मे मेहनत कीजिए। किताबे पढ़िये ,अच्छे शौक पालिये।जो भी करना चाहते हैं, करते रहिए,मेहनत करते रहिए बस रुकिए मत जब तक अपने मक़सद में कामयाब न हो जाओ।अगर आप चाहते हैं कि दुनिया आपकी क़द्र करे,तो पहले आप ख़ुद की क़द्र कीजिये औऱ ख़ुद पर मेहनत करते रहिए।
- Salma Malik

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