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January 15, 2023
अनेकों विरह- पीर के बाद भी, हे प्रियतम ! मैं चाहती हूँ , तुम्हारे प्रेम में राधा-सा होना..

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इस सांसारिक प्रेम से परे,
हे प्रियतम !
मैं चाहती हूं
तुम्हारे प्रेम में
गोकुल की गोपियों-सा होना,
उनके
निष्काम प्रेम की ही तरह
मेरे प्रेम का भी
उतना ही पवित्र होना,
और
और मैं चाहती हूँ,
प्रेम का
उस चरम तक पहुँचना
जैसे
राधे-कृष्ण का दिव्य प्रेम,
जिससे जन्म लिया
प्रेम की परिभाषा ने
जिससे
ज्ञान हुआ
प्रेम की सात्विकता का
उसके
माधुर्य भाव का
और
निस्वार्थ प्रेम की धारणा का,
इसमें
जितना आनंद ,
उतना ही
विरह भी शामिल.
अनेकों विरह- पीर के बाद भी,
हे प्रियतम !
मैं चाहती हूँ तुम्हारे प्रेम में
राधा-सा होना,
लेकिन
उसके लिए
तुम्हें भी
कृष्ण होना होगा !
- साक्षी
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