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जब तुम्हे रातो को नींद नहीं आती है
जब तुम्हे दिन भर में हुई कोई बात सताती है
जब सपनो में भी तुम्हे तुम्हारी गलतिया ही नज़र आती है
मै समझता हूँ
जब तुम्हारे अपनो को भी तुमपे नाज़ नहीं होता है
तुम्हारे होने न होने का उनपे कोई अहसास नहीं होता है
भीड़ में रहके भी तुम ख़ुद को अकेला पाते हो
तो मैं समझता हूँ
जब तुम्हारे दोस्तो के पास तुमसे अच्छे कपड़े होते है
तुम्हारी जरूरतों से ज़्यादा तो उनके नख़रे होते है
अपने फटे हुए जूतों को देख जो तुम नज़रे चुराते हो
तो मैं समझता हूँ
जब तुम्हारी हर हसीं के पीछे एक दर्द होता है
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