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सतयुग, त्रेता न द्वापर के,
हम कलयुग के प्राणी हैं।
हम- सा प्राणी हैं किस युग में ?
हम अधम देह धारी हैं।
हमारा युग तोप-तलवार
जन-विद्रोह का है।
सामंजस्य-शांति का नहीं
भेद-संघर्ष का है।
हमने सदियों '' बसुधैव कुटुंबकम ''
की भावना छोड़ दिया।
और कलि के द्वेष पाखंड से
और कलि के द्वेष पाखंड से
नाता जोड़ लिया।
हम काम क्रोध में कुटिल हैं,
परधन परनारी निंदा में लीन हैं।
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