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परिंदों को नहीं भाता, ये गारे ईंट का जंगल
न जाने क्यूँ शहर मेरा, बना कंक्रीट का जंगल
दफ़न इनके तले मासूमियत, सपने, तमन्नाएं
तरक़्क़ी बो गई पत्थर के लाखों फीट का जंगल
- साहिल
Twitter: @Saahil_77
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