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इस क़दर ज़हर अब हवा में हैं 

मर्ज़ ही आज कल दवा में है


तुम भला क्या हमें संभालोगे 

लड़खड़ाना मेरी अदा में है 


उसके हाथों में फिर से ख़ंजर है

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