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जड़ें अपनी ही हिलाएंगे, कहाँ जायेंगे
पत्ते ही शाख़ को खाएंगे, कहाँ जायेंगे
मुल्क़ बनता ही रहा है सदा बनते-बनते
तोड़ के इसको बनाएंगे, कहाँ जायेंगे
रहनुमा वो हैं जिन्हें इश्क़ है अंधेरों से
हमें सूरज वो दिखाएंगे, कहाँ जायेंगे
हमारी आँख में उम्मीद का जज़ीरा है
अश्क़ में इसको डुबाएंगे, कहाँ जायेंगे
जो उठाते हैं सुबह-शाम उँगलियाँ सब पे
गिने ऊँगली पे ही जायेंगे, कहाँ जायेंगे
- साहिल
Twitter: @Saahil_77
Facebook: facebook.com/SaahilVerses
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