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हम जिन्हें दिल से दोस्त कहते हैं
वो मेरी आस्तीं में रहते हैं
लब पे मुस्कान, दर्द सीने में
इस तरह ज़ुल्म उनके सहते हैं
किस तरह एतबार हो उन पे
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हम जिन्हें दिल से दोस्त कहते हैं
वो मेरी आस्तीं में रहते हैं
लब पे मुस्कान, दर्द सीने में
इस तरह ज़ुल्म उनके सहते हैं
किस तरह एतबार हो उन पे
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