चाँद's image
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इतरा रहा है क्यूँ भला ऐ चाँद तू बता 

तेरे तो रुख़ का नूर भी ठहरा उधार का 


क्या तू भी बदगुमान है इन्सान की तरह

ना तो तेरी ज़मीन हैं, ना तेरा आसमां


महलों की दीवारों पे तेरी आँख टिकी हैं 

ड्योढ़ी की तरफ़ मेरी कभी आँख तो घुमा 


अश्क़ों से मेर

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