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अपने ही जद्दोजहद में बेबस है हर इंसान
अपने बनाए घेरे में कैद है हर इंसान
रिश्तों के चक्रव्यूह में फंस कर रह गया
जो मकसद था जीवन का फिसल कर रह गया ।
एक लकीर जो खींचा उसको लांघना मुश्किल
उस पार जिंदगी को समझना भी मुश्किल
हालात के बिसात पर थम कर रह गया
संभलना जब चाहा तब वक्त निकल गया ।।
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