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वक्त को पीछे ले जाओ
सोचो बचपन के वो दिन
जब साथियों के साथ खेलना मस्ती करना
ना खाने की चिंता ना जमाने की
दोस्तों संग बेफिक्र जीवन,
जिसमें मस्ती भी थी खुशियां भी
मां को खाना खिलाने के लिए हमारे
पीछे पीछे भागना पड़ता था,
वो प्यार भरी घुड़की वो कान पकड़ना
कितना सुखदायी और मनोरम था,
अब बड़ा होकर जिम्मेदारियों के तले
अपनी हर खुशियां न्योछावर कर हम
अपने जिम्मेदारियों को जीते हैं
वो बचपन के दिन पचपन में भी
बस कल की बात लगते हैं ।
जिंदगी के बढ़ते पड़ाव में ना जाने हम
कितने अपनों को खोया जो हमारी
खुशी के लिए जीते थे ।
काश ! वो दिन वापस आ सकता है
क्या वक्त पीछे जा सकता है, शायद नहीं !
पर हम उन सुनहरे पल को अपनी यादों
में जी तो सकते हैं ।।
अपने बचपन के सुनहरे पलों को याद
कीजिए शायद रिश्तों की अहमियत का
एहसास हो जायेगा ।।
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