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वक्त की बिसात पर हर इंसान
तौला जाता है,
कभी कम तो कभी ज्यादा हो जाता है,
यह बात दीगर है की मुफलिसी से घिरा इंसान,
सदा कम ही आंका जाता है ।
जिस तराजू का दोनों पलड़ा कुदरत
का माप है,
फिर इंसान का तोल क्यों कम और ज्यादा
कैसा अभिशाप है,
कर्म ही आधार बना इंसान की किस्मत
फिर सब ही कर्म करते हैं ,
फिर अलग अलग माप का जज्बात क्या है ?
जब ईश्वर ने ही इंसान इंसान में भेद कर दिया
तब इंसान भेद करे तो विवाद क्या है ?
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