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वक्त का परिंदा

Sahdeo SinghSahdeo Singh April 20, 2022
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वक्त का ये परिंदा रुका है कहां

यह तो उड़ता रहा है यहां और वहां,

छोड़ गांव उड़कर पहुंचा शहर में यहां,

कोई अपना नहीं अजनबी हैं यहां,

कोई ठौर ठिकाना कैसे होगा गुजर,

रोटी कमाने को आया इस अजनबी

शहर,

उड़ते उड़ते परिंदा बैठा एक मुंडेर,

लेकर डंडा भगाया ना दिय

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