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घोंसले से उड़ चले पखेरू

अपना दाना पानी जुटाने को

छोड़ चले अपना घर आंगन

अपनी मंजिल पाने को,

भटक रहे परदेश में दर दर

कोई ना हमदर्द इधर

अपनों का आशीर्वाद यहां बस

नहीं मिला कुछ कमाने को,

गांव की गलियां मां की लोरियां

छूट गए सब साथी संगी

मिट्टी की वह खुशबू छूटी

नहीं मिला हमदर्द कोई मुझको

ढाढस दिलाने को,

छोड़ चले अपना घर आंगन

अपनी मंजिल पाने को ।।

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