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घर से निकला कुछ दूर चला
ठोकर लगी घबरा गया,
मकसद मेरा पूरा होगा नहीं यह
सोचकर घबरा गया,
इस तरह की भ्रांतियों का मूल हमारे
जज्बात में है,
शगुन अपशगुन का भाव छा गया,
कहते हैं हार जीत सफल असफल
की जद्दोजहद,
हमारे खुद के सोच की उपज
हौसला जिसका बुलंद वो जीत
का सेहरा पा गया ।।
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