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सौदागर बन गया है इंसान
दुनिया के बाजार में,
बिक जाने को तैयार हैं हम सब
दौलत की झंकार में,
ना कोई उसूल ना परवाह अस्मत की
बस दौलत कमाने की होड़ है
चेहरे बिकते हैं जमीर बिक रही,
शराफत के इस संसार में ।
सारे रिश्ते नाते सिमट गए हैं अब तो
बस पैसे की खनक की चाहत में
मर्यादाएं भी आहत हैं हर ओर,
इस चकाचौंध की झूठी शान में ।।
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