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सपनों के खंडहर में भटकता हूं दिन रात
इन मलबों में दबे हुए हैं मेरे टूटे वजूद के राज
चारों पहर मेरे मन को चैन नहीं मेरा संताप
सपनों के इन खंडहरों में मेरे दबे हैं जज्बात ।
ख्वाबों का जो गुलदस्ता सजाया था जीवन में
अपने भी दामन भरे होंगे खुशियों के सागर में
ऐसा भी वक्त आया जब बिखर गए हर ख्वाब
गुमनामी के भंवर में उलझा जीवन का हर अंदाज ।
इनमें ही दफन है कहीं मेरे उसूलों का राज
ये शमशान मेरे अरमानों का खुशियों का कब्रगाह ।।
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