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बड़ा सन्नाटा पसरा है
खामोशी की एक धुंध फिजा में छाई है
कहीं कोई हलचल नहीं
चारों तरफ खामोशी की परछाई है,
इंसान इंसान नहीं बुत बन गया है
जबान चुप है आंखों में जिंदगी की
बेरुखी की कसक,
हसरतों के मरते मरघट पर खड़ा
एक रोटी को तरसता बेबस,
इस चिलचिलाती भूख गरीबी से जूझता
हर पल सपने सजोता और मिटाता
एक सन्नाटा के सिवा कुछ भी नहीं ।।
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