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रिश्तों की दुनिया में अकाल आ गया
हर रिश्तों की विश्वसनीयता पर सवाल आ गया
इंसान के जीवन का सफर रिश्तों बिन अधूरा
जब रिश्तों में हानि लाभ का मिसाल आ गया ।
एक दौर था जब सभी रिश्तों में जीते थे
रिश्तों की माला मे गूथे हर कदम चलते थे
आधुनिकता के इस दौर में कुछ टूट रहा है
बिखराव में जीवन का सुख छूट रहा है,
दूरियां बढ़ रही एक खालीपन आ गया,
इंसान रिश्तों के बंधन से कंगाल हो गया ।।
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