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फासले यूं बढ़ते गए,
जिंदगी सिकुड़ती गई,
भावना संवेदना से दूर हो गए हम सब,
मानवता के बीच दीवार बनती गई,
अब ना कोई प्यार है ना कोई जज्बात,
दिखावा और छलावा में जिंदगी
उलझती गई,
बदल गई रिवायतें फासलों के फलसफे
गूंजती फिजाओं में,
बोलियां धर्म मजहब की,
आपसी सद्भाव की डोरियां बिखर गई,
फासले बढ़ते गए, जिंदगी सिकुड़ती गई ।।
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