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निर्जन बस्ती है, यहां कोई नहीं रहता
रहता भी है तो कुछ नहीं कहता,
चुपचाप सभी इस बस्ती में
बेजान इंसानों की इस बस्ती में
कोई मुखर नहीं रहता है
जो भी है जैसा भी है उसी में जीवन चलता है,
आंखों में मायूसी है चेहरे बुझे बुझे से हैं
सांस
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