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निर्जन बस्ती है, यहां कोई नहीं रहता
रहता भी है तो कुछ नहीं कहता,
चुपचाप सभी इस बस्ती में
बेजान इंसानों की इस बस्ती में
कोई मुखर नहीं रहता है
जो भी है जैसा भी है उसी में जीवन चलता है,
आंखों में मायूसी है चेहरे बुझे बुझे से हैं
सांसे तो चल रहीं सबमें पर उत्साह नहीं
किसी में हैं,
मरघट सा सन्नाटा है भयानक काली काली रातें
जीवन सूखे पेड़ों सा है सूखे पत्तों की
खर्राटें ।
कोई हलचल कोई कोलाहल नहीं सुनाई देता है
मूक बधिर इंसानों में जीवन
निःस्वास दिखाई देता है ।।
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