नई सुबह's image
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हर रोज नई सुबह का इंतजार करता रहा

पर वो आशाओं उम्मीदों की सुबह ना आई अभी

हर रात बीत जाने के बाद सुबह की लालिमा से

पूछता रहा इन मायूस चेहरों पर मुस्कान आई नहीं ।

क्यों इन मासूम आंखों में जिंदगी की चमक

दिखती नहीं,

मायूसियों के काले बादलों में रोशनी की कोई

किरण टिकती नहीं,

संघर्ष के पथ पर अग्रसर ये मासूम

जिंदगी की जद्दोजहद में मशगूल हैं

भूख गरीबी से निजात पाने में आज भी

नामाकुल हैं ।

इनकी जिंदगी में नई सुबह होगी कभी

या सियासत के कुचक्रों के शूल से

जिंदगी के बोझ मासूम कंधों पर उठाते

उम्मीदों से चिपके होने की भूल है ।।

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