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सियासत का मोहरा बनी अवाम
जाति पात धर्म मजहब का लेकर नाम
सब अपनी अपनी जुगत लगा रहे
बहुरंगी सत्ता का खेल,
लोकतंत्र के नाम पर पर वोटबैंक का मेल,
जाति समीकरण बिठा रहे हर दल के वीर,
अपने अपने तरकश में भरे हैं जाति धर्म का तीर,
अवाम ठगी बैठी रही सत्ता का नंगा खेल
राष्ट्रप्रेम जनप्रेम नहीं यह सियासी नाटक का रेल।
सत्ता जनमत से मिले, मिले राज का ताज
टक टकी लगाए देखते लोकतंत्र के महराज,
सूट बूट में सजे राज साज श्रृंगार,
वैभव के इस माया का लोकतंत्र का राज ।।
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