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यह कविता जोशी मठ के निवासियों की त्रासदी पर है, लोगों के आशियाने उजड़ने वाले हैं, प्राकृतिक आपदा की इस त्रासदी का दर्द वही महसूस कर सकता है जो उसे झेल रहा है । हम सबकी भावनाएं उनके साथ हैं ।
कुछ सपने टूट रहे हैं
कुछ आंखे भरी भरी
जीवन की इस कठिन घड़ी में
विपदा आन पड़ी ।
जिन दीवारों के अंतर्मन में
सुख दुख की यादें जुड़ी हुई है
उनके हृदय पटल की सांसों से
हर लम्हों की टूट रही लड़ी ।
ये कुदरत की नाराजी है या
अपनी बदनसीबी,
जिस मिट्टी में हम खेले वह
जीवन की बनी त्रासदी,
इनसे जुड़ी हुई हैं जीवन की हर खुशियां,
अब फिर ना मिलेगी इन खुशबू की लड़ियां ।।
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