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जब अपने उसूल घातक हुए तो
किसको दोष दूं,
जब खुद के बनाए जाल में उलझ
जाएं तो किसको दोष दूं,
कहते हैं सभी मुझको नाकामयाब हूं
जब कामयाबी का पैमाना बदल जाए
तो किसको दोष दूं,
रिश्तों का मान रखना इंसानियत का तकाजा
जब राम की मर्यादा बदल जाए तो
किसको दोष दूं ।
पिता का मान रखकर वनवास ले लिया
उस मर्यादा की विरासत भी सवालिया
ऐसी सोच में किसको दोष दूं ।।
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