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एक वक्त था जब कारवां चलता साथ साथ
आज वक्त बदला और अकेला हो गया,
झूठ और फरेब को खुद में ना ढाल सका,
पीछे मुड़कर जब देखा तो कारवां गुम हो गया ।
जब तलक सूरज की रोशनी
फिजाओं में रोशन रही सृष्टि के हर अंग में
खुशियां चहल पहल बनी रही,
सूरज के अस्त होते ही
अंधेरों की फैली चादर में सृष्टि का कोलाहल
चिर निद्रा में सो गया ।।
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