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किसी के जिंदगी का फैसला
हम कैसे करें,
जब किसी को जिंदगी दे नहीं सकते
तो उसे मिटाने का हक इंसान को नहीं,
इंसान अपने रसूख के मद में बदहवास
हो जाता है
खुद को न्याय का प्रतीक मान जाता है,
जीवन किसी का भी हो उसके फैसले
से खुदा की खुदाई भी
शर्मसार हो जाता है ।।
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