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अपने आप से जंग लड़ रहा है हर इंसान
हसरतें इतनी बढ़ गई हैं की बेसुध हो गए सब
ख्वाहिशों के उफनते इस महासागर में
डुबकी लगा रहे सब,
कोई डूब जाने के लिए बेकरार
तो कोई पार निकलने के लिए सवार,
इस अनन्त ख्वाहिशों के प्रवाह में सब कुछ
खो देने के लिए तैयार हर इंसान,
ना कोई संस्कृति ना कोई संस्कार
बस कुछ बचा है तो बस अहंकार ।।
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