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इन बूढ़ी आंखो में इंतजार की रेखाएं

एक तड़पती बुझती आशाओं का दर्द

बयां कर रहा है

परिंदे घोंसला छोड़ उड़ चुके हैं

एक नई दुनिया में अपना नीड बनाने के लिए,

ये पुरानी जर्जर साइकिल और उस पर लगी

बच्चों की गद्दी चीख चीख कर पुकार रही है

आ जाओ मेरे जिगर के टुकड़े जिस पर

बैठा कर तुमको हमने जिंदगी के ख्वाब बुने थे,

उसी बीते हुए लम्हों को आंखों में समेटे

इंतजार कब आयेंगे हमारे परिंदे जो एक

नई दुनिया में खो गए,

इन बूढ़ी आंखों में अब भी इंतजार की रेखाएं

खींची हुई हैं ,

बस इंतजार, इंतजार, इंतजार ।।।

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