
Share0 Bookmarks 101 Reads2 Likes
इन बूढ़ी आंखो में इंतजार की रेखाएं
एक तड़पती बुझती आशाओं का दर्द
बयां कर रहा है
परिंदे घोंसला छोड़ उड़ चुके हैं
एक नई दुनिया में अपना नीड बनाने के लिए,
ये पुरानी जर्जर साइकिल और उस पर लगी
बच्चों की गद्दी चीख चीख कर पुकार रही है
आ जाओ मेरे जिगर के टुकड़े जिस पर
बैठा कर तुमको हमने जिंदगी के ख्वाब बुने थे,
उसी बीते हुए लम्हों को आंखों में समेटे
इंतजार कब आयेंगे हमारे परिंदे जो एक
नई दुनिया में खो गए,
इन बूढ़ी आंखों में अब भी इंतजार की रेखाएं
खींची हुई हैं ,
बस इंतजार, इंतजार, इंतजार ।।।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments