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घर की प्रतिदिन एक एक दीवारें
टूट रहीं हैं,
क्या ये घर बिखर जायेगा जिस घर
को बनाने में हमारे पूर्वजों ने बलिदान दिया,
रोज रोज नफरती अल्फाजों से घायल
होता ये सुख शांति का मंदिर
प्रतिदिन एक एक मूल्यों से बिखर रहा है,
जिस घर की दीवारों में एक सौ पैंतीस पैंतीस
करोड़ लोग रहते हैं,
हर धर्म हर समुदाय हर जाति हर भाषा के लोग
अपनी अपनी परंपराओं के साथ प्रेम सौहार्द्र
भाई चारा से रहते थे,
उन संबंधों का एक एक सिरा टूट कर बिखर
रहा है ।
यह घर हम सबका है इसे टूटने नहीं देना है
यही संकल्प करना है ।।
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