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गाँव छोड़ मैं शहर की ओर चला,
रोजी रोटी की जुगाड में,
छूटा माँ के आँचल का सिलसिला,
गाँव छोड़ मैं शहर की ओर चला ।
ये गलियाँ ये सड़क ये नीम की छाया,
जहाँ भरी दोपहरी में हमने था समय बिताया,
उन लमहों से जुडा है कभी भूल ना पाया,
वो खेतों मे लहलाते गेहूं की बालियां,
छोड़ कर आया किससे करुँ मैं गिला,
गाँव छोड़ मैं शहर की ओर चला ।
उन यादों का साया जहाँ बचपन बिताया,
वो मनोहर यादें सदा दिल मे समाया,
भूल सकता नहीं उस मान्टी की सुगंध,
जिसके आँचल की साया में,
जीवन का सुख समाया,
नहीं भूलेगा कभी उन यादों का सिलसिला,
गाँव छोड़ मैं शहर की ओर चला ।।
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