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एक चिराग की मद्धिम रोशनी
झोपड़ी से छन छन कर आ रही है
उस प्रकाश की मद्धिम रोशनी में
एक अजनबी की छाया बढ़ रही है,
एक बीमार कृष काया की खांसती
धीमी आवाज जैसे पुकार रही है
भूख से तड़पती काया रोटी एक निवाला
के लिए पुकार रही है ।
एक अनजान छाया झोपड़ी के पास
हाथों में एक पोटली थामे दबे पांव झोपड़ी
में प्रवेश कर आंखों में आंसुओं का सैलाब
लिए अपनी बीमार मां को देख रहा ह
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