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एक आवाज कानों में गूंजती हरदम
कभी मधुर संगीत तो कभी सरगम
एक दौर था जब गीत संगीत सुकून देता
अब तो फूहड़पन बेसुरा हो गया आधुनिक
सरगम,
ना कोई गीत दिल की गहराइयों में उतर पाता है
ना ही श्रोताओं को सुकून दे पाता है,
सुर लय ताल के बिना कोई गीत सरगम नहीं
बन पाता है ।
बेसुरा आवाज और मर्यादाहीन शब्दों की भरमार
आजकल के गीतों में ना कोई भावनाओं का आधार
बस अंग्रेजी वाद्य यंत्रों की कर्कश धुने
श्रोताओं को शोर गुल से करती सराबोर ।।
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