
Share0 Bookmarks 41 Reads0 Likes
बड़ा अफसोस है यारों
सियासत के कद्रदानों से,
भीड़ बनकर खड़े हैं सभी
अपने मेहराबानों से,
ये कैसा माहौल है जिसमें हर
इंसान है गाफिल
किसी को अपनी चिंता नहीं
बस एक भीड़ है शामिल,
कभी नारे लगाते हैं कभी उन्माद
फैलाते हैं
इंसान को इंसान से मजहब पर
लड़ाते हैं,
अरे भाई कभी सोचो अपने भी
बुलंदी का,
बदल दो रास्ता इस भीड़ बंदी का,
किसी बदलाव के लिए अपना कदम
तो बढ़ाओ,
किसी लक्ष्य के जीत पर बढ़ते चले जाओ ।।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments